अक्सर रुक गई कहां से देदी आवाझ फिर
एक एक कदम नजदीक फिर राह दूर दूर
बेशुमार प्यार की हद पार दिल चाहिये
कदर करते लब्ज और अल्फाझ चाहिये
लहेरे लडखडाये नशीला समंदर चाहिये
जादु प्यार का कातिलाना नजर चाहिये
बेहता झरना नदीसा पानी मीठा चाहिये
थाम ले पकड महेरबान डगर चाहिये
बाजुनाना जनाजा खिडकी कबर पास चाहिये
पल-दो-पल का याराना नही खुद खुदा चाहिये
निगाहे छू ले लहु, सांसो पे हक तेरा चाहिये
आठों प्रहर की प्यास का कब हिसाब चाहिये
कायनात सफर साथ मे हो वो शहर चाहिये
दिल कि जमीं पे हो निशां इत्ना असर चाहिये
----रेखा शुक्ला