एक था गुल और एक थी बुलबुल, दोनो चमनमें रेहते थे
ये तो कहानी बिल्कुल सच्ची मेरे नाना केहते थे...
बुलबुल……!!
घने बादलके पीछे जब चांद जा छुपे,
क्युं बंध आंखो के तारे रुठे ?
गुलशन फिर है बहारो से तो,
क्युं नजांरा युं गुलिश्तां से रुठे ?
लिफाफे रखके एकदम खाली,
क्युं अब इल्जाम से रुठे?
नजांरा इश्क का तो बदलके,
क्युं अब पैगाम से रुठे?
मंजिले बदले चल्ते-चल्ते,
क्युं फिर लोग अपनोसे रुठे?
आसान से पहुंचे चांदपे इन्सां,
क्युं इन्टरनेट पे मिला करे?
सुहानी कहानी बुल और बुलबुलकी,
क्युं ऐसी अब बने कहानी??
-रेखा शुक्ल(शिकागो)